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लायक नालायक (Story)

Pankaj Singh October 21, 2021
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एक गांव मे हरिहर नाम का एक किशान रहता था, वो अपनि पत्नी और दो बेटो के साथ रहता था,  उसका बड़ा बेटा का नाम राजेस और छोटा बेटा का नाम राकेस था। हरिहर बहुत ही मेहन्ती था और उसका परिवार खुसहाली के साथ गांव मे रहता था।  लेकिन उसके दोनो बेटो मे बहुत ही अंतर था, जहां बड़ा बेटा हरिहर का हर बात मानता था, सोच समझकर फैसला लेता था और पढने मे भी तेज था तो वहीं छोटा बेटा चंचल स्वभाव का था, अपनि हरकतो कि वजह से हमेसा अपने पिता से डांट सुनता रहता था, उसका पढने मे भी कोइ रुची नही था।  उसके पिता हमेसा कहते रहते थे कि उनका नाम उसका बड़ा बेटा ही रोशन करेगा, छोटे से तो कोइ उमीद नही है।  इसि तरह साल बितते गए, और उनके दोनो बेटे भी बड़े हो गए, अपने अपने प्रक्रिती के अनुसार बड़ा बेटा पढ़ लिखकर सहर मे एक सरकारी विभाग मे अफसर बना तो वहिं छोटा बेटा अपनि पढायी छोड़्कर पिता के साथ खेत मे काम करने लगा।  हरिहर भी उम्रदराज हो गया था, जिसकी वजह से घर कि अमदनी भी कम हो गयी थी, और छोटा बेटा सिर्फ पिता के निरदेसो को ही मनता था, अपने तरफ से कुछ नही करता था।

कुछ महिनो बाद हरिहर एक बहुत बड़ा घर परिवार देखकर अपने बड़े बेटे राजेस का विवाह करवा देता है, उनका बहु भी बहुत पढी लिखी मिलती है।  विवाह के बाद बेटा और बहु दोनो सहर चले जाते है। लेकिन कुछ महिनो बाद बड़ा बेटा सहर से वापस आता है और अपने पिता से कहता है “पिताजी मेरा विवाह हो चुका है, और कुछ दिनो बाद मेरा परिवार भी बड़ा हो जायेगा, मै चाहता हुं कि मेरे हिस्से का जमीन जायदाद मुझे दे दिया  जाए जिसे बेचकर मै सहर मे एक नया फ्लैट ले सकुं , क्यों की अब तो हमारा गांव मे रहना मुमकीन नहि है, काम काज सब सहर मे है। ” हरिहर भी अपने बेटे कि बातो से सहमत था, उसने बिना कु्छ सोचे समझे वकील को बुलाकर जायदाद के एक बड़े हिस्से को अपने बड़े बेटे के नाम कर देता है।  बड़ा बेटा भी कहे अनुसार उसे बेचकर सहर मे एक बड़ा सा फ्लैट ले लेता है।  इसके बाद हरिहर के पास सिर्फ रहने के लिए एक छोटा सा घर और खेती के लिए एक छोटा सा जमीन क टुकड़ा रह जाता है, जिसमे हरिहर और उसका छोटा बेटा राकेस खेती करते थे।

एक दिन जब रात को हरिहर सो रहा था तभि उसके दरवाजे पर कोइ अया और जोर जोर से खट खटाने लगा , अवाज सुनकर हरिहर और उसकि पत्नी दरवाजा खोलते है, और सामने का नजारा देख कर उनके पैरो तले जमीन खिसक जाते है।  वो देखते है कि उनका छोटा बेटा राकेस और एक लड़की दुल्हे और दुलहन के लिबास मे खड़े थे। हरिहर ये सब देखकर चिल्लाते हुए पुछता है “ये सब क्या है?”, तभि छोटा बेटा राकेस कहत है “पिताजी ये मैथिली है, हम दोनो कयी सालो से एक दुसरे को पसंद करते है, लेकिन मैथिली के परिवार को हमारा रिसता पसंद नही था, जिस कारण से मैथिली का विवाह कहीं और करवाना चाहते थे, इसलिये हमने एक दुसरे से विवाह कर लिया।

हरिहर राकेस से कहता है, “ये तुने क्या किया, तुने कभि हमारी बात नही मानी, हमेसा अपने ही मन का किया।  हमारे हालात भी ठिक नही है, मैने सोचा था कि तेरा विवाह कहीं अच्छी जगह करवाकर उससे मिलने वालि दहेज से अपने हालात सुधारेगें , लेकिन तुने सब बरबाद कर दिया , तु हमेसा से नालायक था, बस अब और हम तेरे साथ नहि रहना चाहते, हम सहर चले जायेंगे अपने बड़े बेटे के पास, तु अपनी जिंदगी संभाल येहां।  वैसे भि बहुत दिनो से राजेस हमे सहर बुला रहा है।  लेकिन तु फिकर न कर, हम तेरे प्रती अपने सारे करतव्य को निभाते हुए जायेंगे।  बचे हुए सारे जायदाद को तेरे नाम करके जायेंगे, तु जी अपनी जिंदगी येहां।  तभि राकेस रोते हुए पिताजी के कदमो मे गिरकर कहता है “क्रिपया हमे छोड़कर ना जाए, आपके बिना हम नही रह पायेंगे, लेकिन हरिहर अपने पैरो को झटकते हुए गुस्से मे अपने कमरे मे चला जाता है। कहे अनुसार अगले ही दिन वो वकील को बुलाता है और बची हुइ जायदाद अपने छोटे बेटे राकेस के नाम करके अगले ही दिन अपनी पत्नी के साथ सहर अपने बड़े बेटे के पास रहने चला जाता है।

सहर मे बड़ा बेटा अपने माता पिता को देखकर बहुत खुस होता है, राजेस को एक बेटी भी होती है, हरिहर और उसकि पत्नी अपने पोती के साथ हसते खेलते एक साथ उस फ्लैट मे रहने लगते है, इसी तरह चार साल बीत जाते है, इन चार सालो मे हरिहर अपने छोटे बेटे के बारे मे कभि पता करने कि कोसिस नही की, लेकिन छोटा बेटा हमेसा हरिहर को खत लिखता था और आने का अग्रह करता था, लेकिन हरिहर उस खत का एक बार भी जवाब नही दिया।

एक दिन हरिहर अपनि पोती के साथ खेल रहा थ, तभि राजेस आता है और अपने माता पिता से कहता है हमे आपसे कुछ बात करना है, हरिहर कहता है, बोलो बेटा क्या कहना चाहते हो। राजेस कहता है कि, जब हमारी बेटी हुयी तब हमने आप लोगो को बुलाया उसका खयाल रखने के लिये, क्योंकी सहर मे हमे समय नहि मिल पाता इन चिजो का, अब हमारी बेटी बड़ी हो गयी है और आप लोगो का यहां लगभग चार साल से ज्यादा हो गया है, हम चाहते है की आप लोग वापस गांव चले जाए, मेरी पत्नी को भी घर मे एकांत का परेसानि हो रही है।

हरिहर और उसकि पत्नी राजेस की बाते सुनकर दुखी हो जाते है, वो तो येहां हमेसा के लिए आये थे, उन्हे नहि पता था कि राजेस उन्हे अपने सहुलियत के लिए बुलाया था।  हरिहर मुसकुराते हुए अपने बेटे से पुछते है “ये घर तो तुम्हारा है न? ” इसपर राजेस कहता है “नही पिताजी, मैने ये घर अपनी पत्नी के नाम पर लिया है, क्योंकि जायदाद खरिदने पर महिलाओ को कम टैक्स चुकाना होता है और मेरी पत्नी भी चाहति थी कि घर उसके नाम पर हो। ”

हरिहर फिर मुसकराते हुए कहता है “मान गया बेटा, तुम कभी कोइ घाटे का सौदा नही करते। ” लेकिन इतना ही कहते हरिहर की आंखे नम हो जाता है, फिर दुसरि तरफ घुमकर कहत है “चिंता मत करो बेटा हम एक दो दिनो मे ही चले जायेंगे, असलि मे गलती हमारी है, इतने दिनो तक येहां नही रुकना था। ”

उस रात हरिहर और उसकि पत्नी को नींद नही आइ, हरिहर कि पत्नी कहति है “अब हम कहां जायेंगे, पुरे चार साल हमने इस घर मे बिता दिया, सहर के बारे मे कोइ जानकारी नहि है, गांव मे सारा जायदाद छोटे बेटे को दे दिया, उसका रवैया कैसा होगा हम नहि जानते, अब हमारी उम्र भी नहि रही काम करने की!, अब हम कहां जायेंगे, क्या करेंगे!?”

हरिहर कहता है, “मै भी येही सोच रहा हुं, चलो गांव ही चलते है, वहीं पर हमने अपनी जिंदगी की सुरुआत की थी, आगे भी वहीं पर कुछ न कुछ करेंगे। ”

दो दिनो के बाद हरिहर और उसकि पत्नी गाड़ी पकड़कर गांव वापस आते है, वो रेलवे स्टेसन से मायुसी के साथ सर झुकाए बाहर निकलते है कि तभी “बाबुजी” का अवाज सुनायी देता है, सामने देखते है कि एक आदमी उन्हे बाबुजी करके बुलाता है, वो उसे पहचान नही पाते है, हरिहर उस आदमी से पु्छता है “तुम कौन हो बेटा?, हमने तुम्हे पेहचाना नही। ” फिर वो अदमी कहता है “बाबुजी हम सोहन है, हम राकेस भैया के लिए काम करते है, आप हमे नही देखे इसलिए आप हमे नही पेहचानते है, चलिये हम आपको घर ले चलते है। ” ये बोलते हुए वो आदमी हरिहर का समान उठाकर एक कार मे डालता है, और उन्हे बैठने को कहता है।  हरिहर को कुछ समझ मे नही आता है, वो और उसकी पत्नी गाड़ी मे बैठ जाती है और गाड़ी चलने लगता है।

उस दौरान वो अदमी हरिहर से कहता है “बाबुजी अगर पता हो्ता कि आप आने वाले हो तो राकेस भैया भी आपको इसटेसन लेने आते, आप तो हमे इसटेसन पर इत्तेफाक से मिल गए!, कोइ बात नहि, हम राकेस भैया को सरप्रइज देंगे।  हरिहर चुप चाप उसकि बाते सुनता है, कुछ घंटे बाद गाड़ी एक बंगले के सामने रुकती है, तभी हरिहर कहत है, “बेटा तुम हमे कहां ले आए हो, ये हमारा घर नही है, सायेद तुम्हे कोइ गलत फहमी हुइ है। ”

आदमि कहता है ” नही बाबुजी हमे कोइ गलत फहमी नही हुइ है, आप थोड़ा इंतेजार करिए, भैया और मालकीन आते ही होंगे। ” , तभी वो अदमी मालकीन मालकीन कहते हुए अंदर  चला जाता है, कुछ देर बाद एक खुबसुरत सी औरत एक बच्चे के साथ बाहर आती है, और आकर हरिहर और उसकी पत्नी के पैर छुती है , तभी हरिहर कि पत्नी उस औरत से पु्छती है “बेटी तुम कौन हो, हमने तुम्हे पहचाना नही?”, तभी वो औरत कहती है, “पहले आप लोग अंदर चलिये हम सब बताते है। ” , अंदर जाने के बाद वो औरत हरिहर और उसकी पत्नी कि सेवा मे लग जाती है, और उस दौरान कहती है “हम आपकी छोटी बहु मैथिली है, और ये आपका पोता और हमारा बेटा है, आप लोग हमारी विवाह पर बहुत नराज थे, इसलिये आप लोग हमार चेहरा तक नही देखे और सहर चले गए, राकेस जी भि बहुत बार आप लोगो को खत लिखे, उसक कोइ जवाब नही आया, भगवान का सुक्र है की आप लोग वापस आ गए। ”

इसि दौरान राकेस भि आ जात है, और पैर छुते हुए अपने मात पिता का हाल चाल पुछता है, फिर राकेस अपने नौकरो को कमरा साफ करने को कहता है और माता पिता के समानो को उस कमरे मे रखवा देता है।  भोजन के दौरान हरिहर राकेस से पुछता है, इतनि तरक्की, इतना बड़ा बंगला ये सब कैसे हुअ? इसके बाद राकेस कहता है, ये सब आप लोगो के आसिरवाद के बदौलत है, हमने आपकी दी हुइ छोटी सी जमीन पर खेती की, फसल अछा हुआ, फिर उस अमद्नि को हमने व्यपार मे लगाया, इस तरह हम तरक्की करते गए, आप यकीन नहि मानेंगे हमने आपकि बेची हुइ जमीन भी दोबारा खरीद ली है।

ये सुनकर हरिहर और उसकि पत्नी के आंखो मे खुसी के आंसु आ जाते है।  वो लोग वहीं खुसी से रहने लगे , राकेस और मैथली हमेसा उन लोगो का आदर पुर्वक सेवा करते रहे, इसी तरह पुरा आठ महिना बीत जाता है।

एक दिन साम के समय हरिहर और उसकि पत्नी नदी के किनरे बने बेंच पर बैठे थे, उसी दौरान हरिहर किसी गहरी सोच मे था, तभि पत्नी हरिहर से पुछती है , “क्या बात है, इतना क्या सोच रहे हो?” , हरिहर अपनी पत्नी से कहत है , “हमरे दो बेटे है, बचपन से मेरा बड़ा बेटा मेरी उंगली पकड़कर मेरे निरदेसो पर चला, हर काम सोच समझकर किया, कभी हमे सिकायत का मौका नही दिया, लेकिन हमारे उम्र के आखिरी पड़ाव पर आकर हमारा साथ छोड़ दिया, वो भी सोच समझकर किया। ”

“वहीं हमारा छोटा बेटा कभी मेरे बातो को नही माना, हमेसा अपने दिल का किया, कभी मेरा हाथ पकड़्कर मेरे निरदेसो पर नही चला, जो भी फैसला करता था सही हो या गलत हमेसा खुद के फैसले लेता था, इस कारण हमने उसका साथ छोड़कर चले गए, लेकिन हमारी उम्र के आखिरी पड़ाव मे वो आकर हमारा हाथ पकड़ा और साथ दिया। ”

“सोच रहा हुं दोनो मे कौन लायक है और कौन नालायक!!, जिसे हमने लायक समझते थे और जो अखिरी पड़ाव मे हमारा साथ छोड़ दिया वो लायक है या वो जिसने कभी हमारा नही सुना, और खुद के बलबुते पर तरक्की किया और हमारे आखिरी पड़ाव मे आकर हमारा हाथ थामा!!। “

“ये सुनकर पत्नी हल्की सी मुसक्राती है और कहती है “ये सवाल दुनिया के हर माता पिता के होंगे , और हर माता पिता इन सवालो का जवाब अपने नजरियों से ढूंड़ते होंगे , जैसे हमने किया!!, येही जिंदगी है। चलिये चलते है, बेटा और बहु हमारा इंतेजार कर रहे होंगे , रात होने वाली है। ”

 

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